Pradeshik Jan Samachar Editor

15 अगस्त को हिन्दुस्तान को आजाद हुये 64 साल होने जा रहे हैं। दिलचस्प यह है कि इसी दिन 15 अगस्त 1995 को भारत के अवाम को इंटरनेट पर विचारों की अभिव्यक्ति का अधिकार भी मिला है। 15 अगस्त को इंटरनेट भारत में अपनी 16वीं सालगिरह मना रहा है।
सच है कि इंटरनेट इस युग में जीने और आगे बढ़ने के सबसे शक्तिशाली माध्यम के रूप में स्थापित हो रहा है। इंटरनेट के माध्यम से आज हर तरह की सूचना हमें बड़ी आसानी से मिल जाती है।
वर्ल्ड वाइड वेब के जन्मदाता टिम बर्नर्स ली चाहते हैं कि इंटरनेट को मूल अधिकारों में शामिल किया जाए। वैसे फिनलैंड में इंटरनेट को नागरिक अधिकारों में शामिल कर लिया है। इसे अब प्राकृतिक माध्यम मानना शुरू कर दिया है। मिस्र ने साबित किया कि यह लोकतांत्रिक उद्देश्यों को पाने का मजबूत साधन बन सकता है। कोई देश या कंपनी इसकी ठेकेदार न बन सके। लिहाजा इंटरनेट की स्वतंत्रता की रक्षा के लिये अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक मिली-जुली नियामक संस्था बनना चाहिए।  संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इंटरनेट की उपलब्धता मूलभूत मानवाधिकार है।  संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिनिधि फ्रैंक ला रू ने ये रिपोर्ट विचारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के प्रचार और संरक्षण के अधीन तैयार की है।
उनका मत है कि इंटरनेट की सुविधा ऐसी परिस्थिति में और महत्वपूर्ण हो जाती है, जब राजनीतिक अशांति फैली हो। ये देखते हुए कि इंटरनेट, असामानता से लड़ने के साथ-साथ विकास और मानव प्रगति को बढ़ावा देने जैसे बहुत से मानवाधिकारों के लिए एक अनिवार्य साधन बन चुका है, इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध कराना सभी देशों की प्राथमिकता होनी चाहिए।
इंटरनेट पारदर्शिता बढ़ाने, जानकारी उपलब्ध कराने और लोकतांत्रिक समाज के निर्माण में आम नागरिकों की सक्रिय भागीदारी बढ़ाने के लिए 21 वीं शताब्दी के सबसे शक्तिशाली उपकरणों में से एक है। मेरी राय में मृत्यु के बाद तकनीक ही ऐसी चीज है जो समाज में सबके लिये समान रूप से प्रभावी होती है।
दुनिया भर में दो अरब लोग इंटरनेट का उपयोग कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिनिधि ला रू ने सरकारों से आग्रह किया हैं कि ऐसे कानून बनाए जाएं, जिससे हर व्यक्ति को इंटरनेट उपलब्ध हो सके।
इंटरनेट एक क्रांतिकारी माध्यम है जो रेडियो, टेलीविजन या प्रकाशित सामग्री से अलग है क्योंकि ये सभी एक तरफा माध्यम हैं। जबकि इंटरनेट एक ऐसा माध्यम है जो संवादात्मक है जिसमें लोग निष्क्रिय होकर केवल जानकारी ग्रहण नहीं करते बल्कि उसमें योगदान भी करते हैं।
दो दशक में ही पूरी दुनिया इंटरनेट की मुरीद हो गई। भविष्य का समाज इंटरनेट और इंटरनेट प्रोटोकॉल वर्जन 6 से संचालित होगा। महज बीस साल में इंटरनेट ने आज वो मुकाम हासिल कर लिया है कि दुनिया भर में करीब 80 प्रतिशत लोग चाहते हैं कि इंटरनेट के प्रयोग को उनके मौलिक अधिकार में शामिल कर देना चाहिए। एक सर्वेक्षण के अनुसार हर पाँच वयस्क लोगों में से हर चार ये मानते हैं कि उन्हें इंटरनेट के प्रयोग की सुविधा उसी ढंग से मिलनी चाहिए जैसे कि ये उनका मौलिक अधिकार हो। दुनिया भर के 26 देशों के कुल 27 हजार वयस्क लोगों की इंटरनेट के बारे में राय ली गई।
जहाँ तक भारत का सवाल है तो यहां 70 प्रतिशत लोग इंटरनेट को अपने विचारों की अभिव्यक्ति का एक सुरक्षित स्थान मानते हैं। जबकि 67 प्रतिशत लोग इंटरनेट पर फेसबुक, ट्विटर, लिंक्डइन और माई स्पेस जैसी सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों पर समय बिताते हैं।
सर्वेक्षण में लोगों ने इंटरनेट को अपने विचारों की अभिव्यक्ति का एक बेहतर स्थान बताया. हालांकि इसके पक्ष और विपक्ष में राय रखने वाले लोगों की संख्या लगभग बराबर थी। सर्वेक्षण से ये भी पता चला है कि इंटरनेट का इस्तेमाल करने ज्यादातर लोग चाहते हैं कि इस पर किसी भी देश में किसी भी तरह का सरकारी नियंत्रण नहीं होना चाहिए। हालांकि कुछ लोग इस संबंध में नकारात्मक विचार भी रखते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि इंटरनेट धोखाधड़ी, अपसंस्कृति जैसी चीजों को बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभा रहा है।
फिलवक्त भारत में एक करोड़ 86 लाख से अधिक लोगों के पास इंटरनेट कनेक्शन है। ग्रामीण दूरसंचार नेटवर्क के विस्तार पर यूनिवर्सल सर्विस फंड यानि यूएसएफ से जुटाये गये कोष से 15 हजार करोड़ का निवेश किया जाएगा। 2012 तक देश की ढ़ाई लाख ग्रामपंचायतें इंटरनेट से जुड़ जायेंगी। इंटरनेट की शक्ति को प्रजातंत्र की नींव मजबूत करने में ज्यादा से ज्यादा किया जा सकेगा यदि इसके उपयोग को मौलिक नागरिक अधिकारों में शामिल कर लिया जाये। भारत के लिये यही सर्वाधिक उपयुक्त समय है।