कैसे रखें दिल और दिमाग के बीच संतुलन? सीखें हनुमान से

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जो भी काम करें, उसे पूरे दिल और दिमाग से करें। इसे सुंदरकांड में हनुमानजी ने समझाया है। जब हम दिल और दिमाग के संतुलन से काम करते हैं, उस समय हमारी वाणी और विचार एक गति से चलते हैं। हमारी वाणी विचार, तर्क और तथ्यों के आधार पर प्रभावशाली बन जाती है। रावण ने अपनी सभा में हनुमानजी से पांच प्रश्न पूछे थे और हनुमानजी ने उसके दस उत्तर दिए थे।
सुंदरकांड में हनुमानजी की वाक्शैली और चातुर्य का अद्भुत प्रसंग है। रावण के प्रश्नों का उत्तर देने के आरंभ में हनुमानजी कहते हैं -
जाके बल लवलेस तें जितेहु चराचर झारि।

तासु दूत मैं जा करि हरि आनेहु प्रिय नारि।।
जिनके लेशमात्र बल से तुमने समस्त चराचर जगत को जीत लिया और जिनकी प्रिय पत्नी को तुम हर लाए हो, मैं उन्हीं का दूत हूं। अपनी बातचीत की शुरुआत में ही हनुमानजी ने रावण को यह स्पष्ट कर दिया कि मैं श्रीराम का दूत हूं।
वे परमात्मा को याद करके अपने भाषण का आरंभ कर रहे थे। हम थोड़ा-सा याद करें कि जब हनुमानजी लंका की ओर उड़े थे, तब भी उन्होंने परमात्मा को याद किया था -
यह कहि नाई सबनी कहूं माता चलेउ हरषिही भयउ रघुनाथा।
सबको मस्तक नवाकर और हृदय में रघुनाथ को धारण करके हनुमानजी प्रसन्न भाव से उड़े थे। आज पुन: ‘मैं उन्हीं का दूत हूं’, कहकर उन्होंने श्रीराम को याद किया और रावण को उत्तर देना आरंभ किया। परमात्मा का स्मरण वाणी को निर्दोष और प्रभावशाली बनाता है। एक-एक उत्तर सुनकर रावण चौंकता गया। फिर हनुमानजी तो उनमें से थे, जो अपने शब्दों की जिम्मेदारी भी उठाने को तैयार रहते हैं।
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