जब
भी कोई काम करें, तो शरीर, मन और आत्मा की भूमिका दिमाग में जरूर रखें। हम
बाहरी सांसारिक वस्तुओं के प्रति व्यक्तियों को लेकर जागरूक रहते हैं,
लेकिन हमारी हर गतिविधि में इन तीनों का बड़ा योगदान है, खासतौर पर मन का,
क्योंकि किसी भी कर्म में मन कामना भर देता है। मन की क्षमता अद्भुत होती
है। यदि उसका ठीक से उपयोग नहीं हुआ है तो वह कामनाओं की आंधी चला देता
है।
जब हम कोई कर्म करते हैं और उसमें मन यदि सक्रिय रहे तो पहला परिणाम फल पर आता है। दूसरा परिणाम उस फल से मिलने वाली खुशी या गम का होता है और तीसरा सामने वाले व्यक्ति पर पड़ता है। जैसे ही मन कर्म में कामना डालता है, आपके कर्तव्य एक सीमा में बंध जाते हैं।
आप शुरुआत ही अपेक्षा से करते हैं। उसमें सेवा की जगह सौदा काम करने लगता है। जो फल अनमोल हो सकता था, उसका पहले ही मोल लगा लिया गया। दूसरी बात यह होती है कि आपको मनमाफिक परिणाम मिलेगा तो आप खुश हो जाएंगे और यदि जैसा चाहें वैसा न मिला तो दुखी होना निश्चित है।
ये खुशी अहंकार में भी आ जाती है और यह दुख डिप्रेशन में डुबो जाता है, क्योंकि दोनों के पीछे मन अपना काम कर रहा होता है और तीसरा खतरा होता है सामने जो लोग हमारे कर्म से प्रभावित हैं, उनके और हमारे बीच सद्भावना का वातावरण समाप्त हो जाता है। कटुता और स्वार्थ बढ़ जाते हैं।
मन में यह ताकत होती है कि वह अच्छे से अच्छा भी सोच सकता है और गलत से गलत तो उसका प्रिय काम है। इसलिए किसी भी काम को करते समय शरीर, मन और आत्मा की भूमिका के प्रति सजग तथा सावधान रहें।
जब हम कोई कर्म करते हैं और उसमें मन यदि सक्रिय रहे तो पहला परिणाम फल पर आता है। दूसरा परिणाम उस फल से मिलने वाली खुशी या गम का होता है और तीसरा सामने वाले व्यक्ति पर पड़ता है। जैसे ही मन कर्म में कामना डालता है, आपके कर्तव्य एक सीमा में बंध जाते हैं।
आप शुरुआत ही अपेक्षा से करते हैं। उसमें सेवा की जगह सौदा काम करने लगता है। जो फल अनमोल हो सकता था, उसका पहले ही मोल लगा लिया गया। दूसरी बात यह होती है कि आपको मनमाफिक परिणाम मिलेगा तो आप खुश हो जाएंगे और यदि जैसा चाहें वैसा न मिला तो दुखी होना निश्चित है।
ये खुशी अहंकार में भी आ जाती है और यह दुख डिप्रेशन में डुबो जाता है, क्योंकि दोनों के पीछे मन अपना काम कर रहा होता है और तीसरा खतरा होता है सामने जो लोग हमारे कर्म से प्रभावित हैं, उनके और हमारे बीच सद्भावना का वातावरण समाप्त हो जाता है। कटुता और स्वार्थ बढ़ जाते हैं।
मन में यह ताकत होती है कि वह अच्छे से अच्छा भी सोच सकता है और गलत से गलत तो उसका प्रिय काम है। इसलिए किसी भी काम को करते समय शरीर, मन और आत्मा की भूमिका के प्रति सजग तथा सावधान रहें।
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