आसान नहीं ये खेल, जिंदगी तक लगती है दांव पर तब हासिल होती है जीत

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स्पोर्ट्सवर्ल्ड में कई खेल ऐसे हैं जिनका अपना अलग अंदाज है। जापान का पारंपरिक खेल सुमो रेसलिंग भी उनमें से एक है। करीब दो हजार सालों से यह खेल जापान को अलग ही पहचान दिलाए हुए है। 
 
हालाकि बीती एक शताब्दी से इस खेल में जापानी वर्चस्व को मंगोलिया व अन्य देशों से चुनौती भी मिल रही है। 
 
आमतौर पर करीब 400 से 600 पौंड (175 से 275 किलो) वजनी ये रेसलर जब रिंग में उतरते हैं जितना ध्यान जीत पर होता है उतना ही इस खेल की गरिमा पर भी। 
 
धर्म की तरह दर्जा रखने वाले इस खेल के नियम कायदे भी आसान नहीं होते।  यही नहीं सुमो रेसलर्स का वजन इनकी जिंदगी तक पर भारी पड़ जाता है। रिंग में जीत उस रेसलर की होती है जो अपने प्रतिद्वंद्वी को या तो रिंग के बाहर कर दे या फिर उसे चित कर दे। आसान नहीं ये खेल, जिंदगी तक लगती है दाव पर तब हासिल होती है जीत               सुमो रेसलिंग रिंग में महिलाओं का प्रवेश वर्जित रहता है। परंपराओं के मुताबिक यह नियम रिंग की शुद्धि के लिए बनाया गया है।सुमो रेसलर को रिंग में अपना मुकाबले से पहल परंपराओं के मुताबिक ताल देना होती हैइस दौरान दोनों हाथों को सीधा रखते हुए यह भी बताया जाता है कि वे रिंग में किसी हथियार के साथ नहीं हैं।आसान नहीं ये खेल, जिंदगी तक लगती है दाव पर तब हासिल होती है जीतरेसलर को बाल छोटे रखने की मनाही होती है। मुकाबले के समय बालों को बांधा जाना जरूरी होता है।  सुमो रेसलर्स के प्रशंसकों के लिए जापानी कुशन की सीट बनाई जाती हैं। सुमो के निराशाजनक प्रदर्शन पर यह कुशन फेंक कर प्रशंसक अपनी नाराजगी जाहिर करते हैं। जापान की प्रोफेशनल सुमो रेसलिंग में इस समय छह डिवीजन हैं। इनमें सबसे बड़ी डिवीजन माकुच्ची है जिसमें करीब 42 रेसलर हैं। दूसरी बड़ी डिवीजन जुरयो है जिसमें करीब 28 रेसलर हैं। रेसलर्स को आम जनता के बीच पारंपरिक परिधानों में रहना होता है जिससे वह अपनी अलग पहचान कायम रख सकें। परिधान भी रैंक के अनुसार निर्धारित होते हैं। रेसलर्स की भी रैंक होती है। टॉप रैंक रैसलर्स को योकोजुना कहा जाता है। योकोजुना की पहचान रस्सी वाले परिधान से होती है।सुमो इतिहास में अब तक 70 रेसलर्स को योकोजुना का दर्जा प्राप्त हो चुका है। हाल ही में मंगोलिया के हरुमाफु जी कोहेई को योकोजुना की रैंक दी गई है। रेसलर को अनुशासन और मान्यताओं के लिए प्रतिबद्धिता दिखानी होती है। अनुशासन का उल्लंघन करने पर सस्पेंड तक कर दिया जाता है।आमतौर पर सुमो रेसलर का वजन 400 से 600 पौंड होता है। इस वजन को हासिल करने व उसे मेंटेन करना रेसलर्स के लिए आसान नहीं होता।  ट्रेनिंग सेंटर जिसे जापान में हेया कहा जाता है में जूनियर रैसलर्स पर खाना बनाने से लेकर अन्य जिम्मेदारियां भी होती हैं। सीनियर होने के साथ-साथ ये जिम्मेदारियां कम होती जाती हैंखाना के लिए भी सबसे पहले टॉप रैंक रेसलर को बुलाया जाता है। उसके बाद ही जूनियर रेसलर खाना खाते हैं। आमतौर पर एक रेसलर दिन भर में करीब 20 हजार कैलारी की डाइट लेता है। दो बार में ली गई यह डाइट आम आदमी से 10-15 गुना होती है। इस हैवी डाइट को पचाने के लिए रेसलर को कड़ी मेहनत करना पड़ती है।सुमो रेसलर अपने शरीर की जरूरत को देखते हुए खाने में सबसे ज्यादा चांकोनाबे डिश लेते हैं। यह मछली, सब्जियों, मीट और और टोफु से बनाई जाती है।  एक शोध के मुताबिक सुमो रेसलर्स की उम्र आम जापानी आदमी से करीब दस साल कम होती है। अधिकांश रेसलर्स की मौत डाइबिटीज, हाईब्लड प्रेशर और हार्ट अटैक से होती है। सुमो रेसलर्स का जरूरत से ज्यादा वजन ही आखिर उनकी मौत का कारण बनता है।
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