नई दिल्ली. पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। वह एलओसी पर सीमा पार से लगातार फायरिंग कर रहा है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ (नवाज नहीं दिखा रहे 'शराफत', एक महीने में 7 बार 'आंखें' दिखा चुका है पाकिस्तान) की सीमा पर संयम बरतने की सार्वजनिक अपील का भी पाकिस्तानी सेना पर कोई असर नहीं पड़ रहा है।
लेकिन पाकिस्तान के लिए यह सब नई बात नहीं है। वह आजादी के समय से ही भारत के खिलाफ साजिश रच रहा है। लेकिन 1971 में पाकिस्तान की हरकतों के चलते अमेरिका जैसे देश को भारत के खिलाफ खड़ा होना पड़ा था। 1971 में भारत-पाकिस्तान की ऐतिहासिक लड़ाई से पहले पाकिस्तान ने तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (जो बाद में स्वतंत्र देश बांग्लादेश बना) में जनरल टिक्का खान की अगुवाई में जबर्दस्त अत्याचार किया था। जिसके चलते लाखों की तादाद में लोग तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान से भारत की सीमा में दाखिल होने लगे। ऐसे में भारत की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा पैदा हो गया था। ऐसे में भारत को मजबूरी में जंग में कूदना पड़ा। लेकिन इस वजह से दक्षिण एशिया में तीसरे विश्व युद्ध के हालात बन गए थे।
पाकिस्तान के अत्याचार के चलते भारत को कूदना पड़ा था जंग में
1971 में पाकिस्तानी सेना की ओर से पूर्वी पाकिस्तान (जो बाद में स्वतंत्र देश बांग्लादेश बना) के लोगों को जब जबर्दस्त यातनाएं दी जाने लगीं तो लोग भड़क गए और बड़ी तादाद में भारत की पूर्वी सीमा में दाखिल होने लगे। यह भारत के लिए बहुत बड़ा खतरा था। इससे न सिर्फ संसाधनों का संकट आ सकता था बल्कि देश की सुरक्षा भी खतरे में पड़ सकती थी। मजबूरी में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पाकिस्तानी सेना के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया। लेकिन इसकी वजह सिर्फ पाकिस्तान था। दोनों देशों की सेनाओं के बीच पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान की सीमा से सटे इलाकों में भीषण युद्ध शुरू हो गया था।
दुनिया का समीकरण
1970 के दशक के उस दौर में अमेरिका पाकिस्तान का समर्थन कर रहा था। अमेरिका ने बड़ी तादाद में हथियार, टैंक और जंगी विमान पाकिस्तान को सौंपे थे। चीन, ब्रिटेन और श्रीलंका जैसे देश भी पाकिस्तान का समर्थन कर रहे थे। वहीं, दूसरी ओर भारत के साथ मजबूती के साथ सिर्फ सोवियत संघ खड़ा था।
(तस्वीर: पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तान के दमन के शिकार लोग)अमेरिका ने रची थी भारत के खिलाफ साजिश
1970 के दशक के उस दौर में अमेरिका पाकिस्तान का समर्थन कर रहा था। अमेरिका न सिर्फ सामरिक तौर पर पाकिस्तान की मदद कर रहा था बल्कि कूटनीतिक तौर पर भी वह पाकिस्तान के साथ था। जब भारतीय सेनाओं ने पूर्वी पाकिस्तान पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली तो अमेरिका को लगा कि भारत की जीत न सिर्फ पाकिस्तान की हार होगी बल्कि वह अमेरिका की कूटनीतिक हार भी होगी। ऐसे में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने अपने सचिव हेनरी किसिंजर को तलब किया। किसिंजर बेहद शातिर शख्स था। उसने भारत को डराने के लिए निक्सन से कहा कि चूंकि भारत पाकिस्तान के खिलाफ दो मोर्चों (पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान) पर लड़ रहा है। ऐसी हालत में अगर चीन की तरफ से भारत की उत्तरी सीमा पर लड़ाई की खबर फैला दी जाए तो भारत के हौसले उखड़ जाएंगे और पाकिस्तानी फौज का उत्साह बढ़ जाएगा। निक्सन ने चीन पर इस बारे में दबाव बनाने का फैसला किया।
(तस्वीर: अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन और उनके सचिव हेनरी किसिंजर)बन गए थे तीसरे विश्व युद्ध के हालात
पाकिस्तान के खिलाफ लड़ रहे भारत को घेरने के लिए अमेरिका, ब्रिटेन, चीन और श्रीलंका जैसे देश एक तरफ हो गए थे। सबसे पहले ब्रिटेन का जंगी जहाज ईगल अरब सागर में भारत की जमीन से कुछ दूरी पर पहुंच गया। जब इस बारे में सोवियत संघ को जानकारी मिली तो उसने अपना शानदार जंगी जहाज अरब सागर की तरफ रवाना कर दिया। सोवियत संघ का जहाज को देखकर ब्रिटिश नेवी के होश उड़ गए और वह अपना जहाज लेकर अफ्रीका की तरफ चला गया। इसी बीच अमेरिका ने भारत पर दबाव बनाने के लिए अपना जंगी जहाज हिंद महासागर में बंगाल की खाड़ी की तरफ भेज दिया। इसके जवाब में सोवियत संघ ने अपनी पनडुब्बियों को समंदर की सतह से इतना ऊपर उठा दिया कि उसकी तस्वीरें अमेरिकी जासूसी विमान खींच सके। जब ऐसा हुआ तो अमेरिका को यह एहसास हो गया कि अगर वह भारत के खिलाफ कोई कार्रवाई करता है तो सोवियत संघ के हमले का सामना करना पड़ेगा। इससे अमेरिका के तेवर ढीले पड़ गए। दूसरे विश्व युद्ध के बाद यह पहला मौका था जब दुनिया की तकरीबन सभी बड़ी ताकतें एक ही इलाके में आमने-सामने की स्थिति में थीं। संयुक्त राष्ट्र में भी अमेरिका ने भारत को घेरने की कोशिश की थी
पूर्वी पाकिस्तान में भारत की जीत की जबर्दस्त संभावना को देखते हुए अमेरिका के होश उड़े हुए थे। अमेरिका ने भारत को मिलने जा रही जीत से रोकने के लिए शांति प्रस्ताव पेश कर दिया। उसने युद्ध पर तत्काल रोक और सेनाओं के वापस आने की बात कही। अमेरिका की तरफ से यह प्रस्ताव जॉर्ज डब्लू. बुश ने पेश किया था। लेकिन सोवियत संघ अमेरिका की चाल को समझ गया। सोवियत संघ को यह भी मालूम था कि इस जंग में भारत की जीत निश्चित है। इन्हीं वजहों से सोवियत संघ ने इस प्रस्ताव के खिलाफ वीटो कर दिया और इस तरह अमेरिका को कूटनीतिक मोर्चे पर मात खानी पड़ी थी। भारत को मिली जीत
1971 में भारत ने पाकिस्तान को जबर्दस्त मात दी थी। भारत की जांबाज सेना ने करीब 90 हजार पाकिस्तानी फौजियों को सरेंडर करने पर मजबूर कर दिया था। भारत ने पूर्वी पाकिस्तान के लोगों को पाकिस्तान के अत्याचारों से आजादी दिलाई थी। इसी के साथ बांग्लादेश का उदय हुआ था। यह पाकिस्तान के लिए सीधी हार का ही मुद्दा नहीं था बल्कि यह अमेरिका, चीन और ब्रिटेन जैसे देशों की बड़ी कूटनीतिक हार भी थी। संयुक्त राष्ट्र में भी अमेरिका ने भारत को घेरने की कोशिश की थी
पूर्वी पाकिस्तान में भारत की जीत की जबर्दस्त संभावना को देखते हुए अमेरिका के होश उड़े हुए थे। अमेरिका ने भारत को मिलने जा रही जीत से रोकने के लिए शांति प्रस्ताव पेश कर दिया। उसने युद्ध पर तत्काल रोक और सेनाओं के वापस आने की बात कही। अमेरिका की तरफ से यह प्रस्ताव जॉर्ज डब्लू. बुश ने पेश किया था। लेकिन सोवियत संघ अमेरिका की चाल को समझ गया। सोवियत संघ को यह भी मालूम था कि इस जंग में भारत की जीत निश्चित है। इन्हीं वजहों से सोवियत संघ ने इस प्रस्ताव के खिलाफ वीटो कर दिया और इस तरह अमेरिका को कूटनीतिक मोर्चे पर मात खानी पड़ी थी। भारत को मिली जीत
1971 में भारत ने पाकिस्तान को जबर्दस्त मात दी थी। भारत की जांबाज सेना ने करीब 90 हजार पाकिस्तानी फौजियों को सरेंडर करने पर मजबूर कर दिया था। भारत ने पूर्वी पाकिस्तान के लोगों को पाकिस्तान के अत्याचारों से आजादी दिलाई थी। इसी के साथ बांग्लादेश का उदय हुआ था। यह पाकिस्तान के लिए सीधी हार का ही मुद्दा नहीं था बल्कि यह अमेरिका, चीन और ब्रिटेन जैसे देशों की बड़ी कूटनीतिक हार भी थी।
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