
अवसर पाकर उर्वशी ने अर्जुन से कहा, अर्जुन आपको देखकर मेरी काम-वासना जागृत हो गई है, इसलिए आप कृपया मेरे साथ विहार करके मेरी काम-वासना को शांत करें। उर्वशी के वचन सुनकर अर्जुन बोले, देवि हमारे पूर्वज ने आपसे विवाह करके हमारे वंश का गौरव बढ़ाया था। इसलिए पुरु वंश की जननी होने के नाते आप मेरी माता के तुल्य हैं। इसलिए मैं आपको प्रणाम करता हूं। अर्जुन की बातों से उर्वशी के मन में बड़ा क्षोभ उत्पन्न हुआ और उसने अर्जुन से कहा, तुमने नपुंसकों जैसे वचन कहे हैं, इसलिए मैं तुम्हें शाप देती हूँ कि तुम एक वर्ष तक पुंसत्वहीन रहोगे।इतना कहकर उर्वशी वहां से चली गई। जब इंद्र को इस घटना के बारे में पता चला तो वे
अर्जुन से बोले, तुमने जो व्यवहार किया है, वह तुम्हारे योग्य ही था। उर्वशी का यह शाप भी
भगवान की इच्छा थी, यह शाप तुम्हारे अज्ञातवास के समय काम आयेगा। अपने एक वर्ष के अज्ञातवास के समय ही तुम पुंसत्वहीन रहोगे और अज्ञातवास पूर्ण होने पर तुम्हें पुनः पुंसत्व की प्राप्ति हो जाएगी। इस शाप के कारण ही अर्जुन एक वर्ष के अज्ञात वास के दौरान बृहन्नला बने थे। इस बृहन्नला के रूप में अर्जुन ने उत्तरा को एक वर्ष नृत्य सिखाया था। उत्तरा विराट नगर के राजा विराट की पुत्री थी। अज्ञातवास के बाद उत्तरा का विवाह अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु से हुआ
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