रांची, जागरण संवाददाता। झारखंड हाई कोर्ट ने देवघर के बाबा बैद्यनाथ
मंदिर की प्रबंध समिति में व्याप्त अनियमितता व दशहरा में पशु बलि दिए जाने
के मामले में एक याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र, राज्य सरकार व मंदिर
प्रबंध समिति को नोटिस जारी किया है। दिलीप जेरथ ने याचिका दायर कर मुख्य
न्यायाधीश प्रकाश टाटिया व न्यायमूर्ति जया राय की खंडपीठ को बताया कि
प्रबंध समिति ने दशहरा व काली पूजा में देवघर बाबा बैद्यनाथ मंदिर में पशु
बलि दिए जाने का निर्णय लिया है।
हाई कोर्ट के आदेश के आलोक में समिति का गठन 2001 में किया गया था। अब तक इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है। समिति में बड़े पैमाने पर प्रशासनिक व वित्तीय अनियमितता है। समिति कल्याणकारी कार्य करने के बजाय लाखों रुपये पशु बलि पर खर्च कर रही है। इस पर अविलंब रोक लगनी चाहिए। याचिका में यह भी कहा गया है कि समिति अपने उद्देश्यों से विमुख हो गई है। ऐसी स्थिति में हाई कोर्ट को हस्तक्षेप कर सुधार के कदम उठाए जाने चाहिए। मामले की अगली सुनवाई दस अक्टूबर को होगी। मंदिर की परंपरा का निर्वहन कर रहा बोर्ड
देवघर। पशु बलि एवं बोर्ड की वित्तीय अनियमितता संबंधी नोटिस पर बोर्ड के सदस्य व पूर्व मंत्री कृष्णानंद झा ने कहा कि बोर्ड ने इस परंपरा को शुरू नहीं किया है। यह मंदिर की हजारों वर्षो की परंपरा है जिसके निर्वहन का दायित्व बोर्ड द्वारा किया गया है। जहां तक दिलीप जेरथ का सवाल है तो वह भी 2001 से प्रबंधन बोर्ड के सदस्य हैं। उन्हें हाई कोर्ट जाने से पहले अपना इस्तीफा भेज देना चाहिए था। लगता है उनके द्वारा माननीय न्यायालय को मंदिर की आंतरिक परंपरा से जुड़े तथ्यों के बारे में नहीं बताया गया है। चूंकि यह व्यवस्था बोर्ड ने शुरू नहीं की है, इसलिए वह बंद भी नहीं कर सकता है। दूसरा इससे धार्मिक भावना को आघात पहुंचेगा। नोटिस मिलने के बाद न्यायालय को तथ्यों से अवगत कराया जाएगा। उसके बाद जो फैसला आएगा देखा जाएगा।
वित्तीय अनियमितता में जेरथ भी शामिल
पंडा धर्मरक्षिणी सभा के महामंत्री दुर्लभ मिश्र ने कहा कि दिलीप जेरथ 12 वर्ष से बोर्ड के सदस्य हैं। ऐसे में वह भी उतना ही दोषी हैं जितने अन्य सदस्य। बलि प्रथा को ले 1954 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले का जिक्र करते कहा कि जिस मंदिर की जो भी आंतरिक व्यवस्था है उसमें किसी प्रकार का प्रशासनिक हस्तक्षेप नहीं होगा। उन्होंने कहा कि संविधान में सभी को धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त है, वह अपने धर्म के अनुसार आचरण करने को स्वतंत्र हैं। इसमें किसी प्रकार का हस्तक्षेप मौलिक अधिकार में हस्तक्षेप माना जाएगा। मिश्र ने कहा कि दिलीप जेरथ को बोर्ड की सदस्यता से अविलंब हटा देना चाहिए।
हाई कोर्ट के आदेश के आलोक में समिति का गठन 2001 में किया गया था। अब तक इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है। समिति में बड़े पैमाने पर प्रशासनिक व वित्तीय अनियमितता है। समिति कल्याणकारी कार्य करने के बजाय लाखों रुपये पशु बलि पर खर्च कर रही है। इस पर अविलंब रोक लगनी चाहिए। याचिका में यह भी कहा गया है कि समिति अपने उद्देश्यों से विमुख हो गई है। ऐसी स्थिति में हाई कोर्ट को हस्तक्षेप कर सुधार के कदम उठाए जाने चाहिए। मामले की अगली सुनवाई दस अक्टूबर को होगी। मंदिर की परंपरा का निर्वहन कर रहा बोर्ड
देवघर। पशु बलि एवं बोर्ड की वित्तीय अनियमितता संबंधी नोटिस पर बोर्ड के सदस्य व पूर्व मंत्री कृष्णानंद झा ने कहा कि बोर्ड ने इस परंपरा को शुरू नहीं किया है। यह मंदिर की हजारों वर्षो की परंपरा है जिसके निर्वहन का दायित्व बोर्ड द्वारा किया गया है। जहां तक दिलीप जेरथ का सवाल है तो वह भी 2001 से प्रबंधन बोर्ड के सदस्य हैं। उन्हें हाई कोर्ट जाने से पहले अपना इस्तीफा भेज देना चाहिए था। लगता है उनके द्वारा माननीय न्यायालय को मंदिर की आंतरिक परंपरा से जुड़े तथ्यों के बारे में नहीं बताया गया है। चूंकि यह व्यवस्था बोर्ड ने शुरू नहीं की है, इसलिए वह बंद भी नहीं कर सकता है। दूसरा इससे धार्मिक भावना को आघात पहुंचेगा। नोटिस मिलने के बाद न्यायालय को तथ्यों से अवगत कराया जाएगा। उसके बाद जो फैसला आएगा देखा जाएगा।
वित्तीय अनियमितता में जेरथ भी शामिल
पंडा धर्मरक्षिणी सभा के महामंत्री दुर्लभ मिश्र ने कहा कि दिलीप जेरथ 12 वर्ष से बोर्ड के सदस्य हैं। ऐसे में वह भी उतना ही दोषी हैं जितने अन्य सदस्य। बलि प्रथा को ले 1954 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले का जिक्र करते कहा कि जिस मंदिर की जो भी आंतरिक व्यवस्था है उसमें किसी प्रकार का प्रशासनिक हस्तक्षेप नहीं होगा। उन्होंने कहा कि संविधान में सभी को धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त है, वह अपने धर्म के अनुसार आचरण करने को स्वतंत्र हैं। इसमें किसी प्रकार का हस्तक्षेप मौलिक अधिकार में हस्तक्षेप माना जाएगा। मिश्र ने कहा कि दिलीप जेरथ को बोर्ड की सदस्यता से अविलंब हटा देना चाहिए।
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