भगवान कृष्ण से सीखें प्रकृति की बेजान चीजों में भी आनंद के सुर

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यदि दृष्टि कलात्मक हो, तो निर्जीव वस्तु से भी सौंदर्य पैदा किया जा सकता है। दरअसल हम अपने समूचे जीवन में जड़ वस्तुओं के प्रति अत्यधिक लापरवाह और निष्ठुर होते जाते हैं। हम उनका रख-रखाव या उनसे संबंध स्वार्थ भाव के कारण ही रखते हैं।
हमारा सारा लगाव यूटीलिटी के लिए है, इमोशन से नहीं। धीरे-धीरे यह आदत सजीव लोगों के साथ भी पड़ जाती है। इसीलिए घर-परिवार में भी लोग एक-दूसरे को यूज करने लगते हैं। कृष्ण ने बांसुरी का उपयोग कर एक बड़ा संदेश यह दिया था कि संवेदनाओं की फूंक से लकड़ी की खोखली पोंगरी भी मधुर ध्वनि दे देती है। हमें अपने आसपास पसरी रोजमर्रा की उपयोगी वस्तुओं के साथ न सिर्फ स्वच्छता वरन संवेदना के साथ व्यवहार करना चाहिए।
इनके साथ ऐसा व्यवहार किया जाए, जैसे ये जीवित वस्तुएं हैं। इसके परिणाम में उनकी उम्र, सौंदर्य एवं गुणवत्ता बढ़ जाएगी। इसके लिए लगातार प्रयोग करने होंगे। एक काम एक ही समय में करें। दरअसल हम भीतर से बंटे हुए रहते हैं। भोजन करें तो सिर्फ भोजन ही करें, हो सके तो उस समय सोच-विचार भी बंद कर दें।
अधिकांश लोग भोजन करते समय वो सारे काम कर लेते हैं, जो पेंडिंग हैं। कहने का आशय यह नहीं कि मौन धारण कर लें, लेकिन फिर भी भोजन और उसकी क्रिया के प्रति ईमानदार रहें। हम भोजन के साथ जिस तरह से कामचलाऊ व्यवहार करते हैं, वैसा ही मनुष्यों के साथ करने लगते हैं। जितना हम जड़ वस्तुओं के प्रति जागरूक रहेंगे, उतने ही हम सजीव वस्तुओं के प्रति प्रेमपूर्ण होते जाएंगे।
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जीवन मंत्र

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