जंगलों, सड़क, खेत खलिहानों के किनारे लगे वृक्षों पर परजीवी अमरबेल का जाल
अक्सर देखा जा सकता है, वास्तव में जिस पेड़ पर यह लग जाती है, वह पेड़ धीरे
धीरे सूखने लगता है। इसकी पत्तियों मे पर्णहरिम का अभाव होता है जिस वजह से
यह पीले रंग की दिखाई देती है। इसके अनेक औषधीय गुण भी है। अमरबेल का
वानस्पतिक नाम कस्कूटा रिफ़्लेक्सा है। आदिवासी अंचलों में अमरबेल को अनेक
हर्बल नुस्खों के तौर पर उपयोग में लाया जाता है, चलिए जानते हैं आज अमरबेल
से जुडे हर्बल नुस्खों और आदिवासी जानकारियों को..पूरे पौधे का काढ़ा घाव धोने के लिए बेहतर है और यह टिंक्चर की तरह काम करता
है। आदिवासियों के अनुसार यह काढा घावों पर लगाया जाए तो यह घाव को पकने
नहीं देता है।
बरसात में पैर के उंगलियों के बीच सूक्ष्मजीवी संक्रमण या घाव होने पर
अमरबेल पौधे का रस दिन में 5-6 बार लगाया जाए तो आराम मिल जाता है।
अमरबेल को कुचलकर इसमें
शहद और घी मिलाकर पुराने घावों पर लगाया जाए तो घाव जल्दी भरने लगता है। यह
मिश्रण एंटीसेप्टिक की तरह कार्य करता है। गुजरात के आदिवासी हर्बल जानकार इसके बीजों और पूरे पौधे को कुचलकर
आर्थराईटिस के रोगी को दर्द वाले हिस्सों पर पट्टी लगाकर बाँध देते है।
इनके अनुसार यह दर्द निवारक की तरह कार्य करता है।
गंजेपन को दूर करने के लिए पातालकोट के आदिवासी मानते हैं कि यदि आम के पेड़
पर लगी अमरबेल को पानी में उबाल लिया जाए और उस पानी से स्नान किया जाए तो
बाल पुन: उगने लगते है।डाँग के आदिवासी अमरबेल को कूटकर उसे तिल के तेल में 20 मिनट तक उबालते हैं
और इस तेल को कम बाल या गंजे सर पर लगाने की सलाह देते है। आदिवासी हर्बल
जानकारों के अनुसार यह तेल बालों के झडने का सिलसिला कम करता है और गंजे
सिर पर भी बाल लाने में मदद करता है।
डाँग के आदिवासी अमरबेल को कूटकर उसे तिल के तेल में 20 मिनट तक उबालते हैं
और इस तेल को कम बाल या गंजे सर पर लगाने की सलाह देते है। आदिवासी हर्बल
जानकारों के अनुसार यह तेल बालों के झडने का सिलसिला कम करता है और गंजे
सिर पर भी बाल लाने में मदद करता है।पातालकोट के आदिवासियों के अनुसार मुँह और पेट के कैंसर या ट्युमर में इस
पौधे का काढा आराम दिलाता है, आधुनिक अध्ययनों से पता चलता है कि इस पौधे
का अर्क पेट के कैंसर से लड़ने में मदद कर सकता है।
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