अब बैक्टीरिया से मिलेगा 'डीजल ऑन डिमांड'

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बैक्टीरिया से तैयार इस डीजल को मौजूदा गाडिय़ों में सीधे इस्तेमाल किया जा सकता है
इस ईंधन का व्यावसायिक उपयोग कर ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में भारी कमी करना संभव

ई कोली का कमाल
ई कोली बैक्टीरिया में यह खासियत होती है कि वह शुगर को प्राकृतिक रूप से फैट में बदल देता है जिससे सेल की झिल्ली का निर्माण होता है। तेल उत्पादन की इस प्राकृतिक प्रक्रिया का दोहन कर कृत्रिम ईंधन तेल के अणुओं का निर्माण किया जा सकता है। ई कोली बैक्टीरिया का उत्प्रेरक के रूप में इस्तेमाल कर बड़े पैमाने पर तेल का निर्माण दवा उद्योग में पहले से ही होता है।

एक बड़ी सफलता हासिल करते हुए शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि उन्होंने ऐसी पद्धति खोज निकाली है जिसमें बैक्टीरिया से मांग के आधार पर डीजल हासिल किया जा सकता है।
हालांकि यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर की ओर से शेल की मदद से विकसित की गई इस टेक्नोलॉजी के व्यावसायिक उपयोग के सामने कई बड़ी चुनौतियां हैं। ई कोली बैक्टीरिया के खास उपभेदों से उत्पादित यह डीजल परम्परागत डीजल ईंधन के समान ही है।
इसका मतलब है कि बैक्टीरिया से तैयार इस डीजल को अन्य पेट्रोलियम पदार्थों के साथ मिलाने की जरूरत नहीं है जैसा कि पौधों से निकले तेल से तैयार बायो-डीजल में आमतौर पर करने की जरूरत होती है।
इसका मतलब यह भी हैकि बैक्टीरिया से तैयार इस डीजल को सप्लाई के लिए मौजूदा इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ ही इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके लिए इंजन, पाइपलाइनों और टैंकरों में संशोधन की जरूरत नहीं होती। इस गुणों से युक्त बायो-ईंधन को 'ड्रॉप-इन्स' का नाम दिया जाता है।
यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर में बायोसाइंसेज के प्रोफेसर जॉन लव का कहना हैकि इस प्रोजेक्ट के तहत उनका मकसद एक ऐसा व्यावसायिक बायो-फ्यूल तैयार करना था जिसका इस्तेमाल वाहनों में बिना किसी संशोधन के किया जा सके।
उन्होंने कहा कि परंपरागत डीजल के स्थान पर एक कार्बन न्यूट्रल बायो-ईंधन का उपयोग व्यावसायिक तरीके से करने के जरिए वर्ष2050 तक ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को 80 फीसदी तक कम करने का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।
ईंधन की वैश्विक मांग बढ़ती ही जा रही है।ऐसे में परंपरागत ईंधन का आकर्षण वैश्विक स्तर पर कीमतों में उतार-चढ़ाव और राजनीतिक अस्थिरता के कारण बढ़ता ही जा रहा है। ई कोली बैक्टीरिया में यह खासियत होती है कि वह शुगर को प्राकृतिक रूप से फैट में बदल देता है जिससे सेल की झिल्ली का निर्माण होता है। तेल उत्पादन की इस प्राकृतिक प्रक्रिया का दोहन कर कृत्रिम ईंधन तेल के अणुओं का निर्माण किया जा सकता है।
ई कोली बैक्टीरिया का उत्प्रेरक के रूप में इस्तेमाल कर बड़े पैमाने पर तेल का निर्माण दवा उद्योग में पहले से ही होता है। हालांकि बायो-डीजल का उत्पादन प्रयोगशालाओं में थोड़ी मात्रा में होता है, लेकिन इस दिशा में काम लगातार जारी है कि क्या इससे ड्रॉप इन फ्यूल तैयार करना व्यावसायिक रूप से सफल हो सकता है।
शेल प्रोजेक्ट्स एंड टेक्नोलॉजी के रॉब ली ने कहा कि यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर ने इस दिशा में जो काम किया है वह गर्व करने योग्य है। आधुनिक बायोटेक्नोलॉजीज का इस्तेमाल कर खास तरह के हाइड्रोकार्बन का निर्माण करना भविष्य में ईंधन की भारी मांग को पूरा करने में काम आ सकता है।
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