गुवाहाटी/अमृतसर। पंजाब पुलिस के पूर्व प्रमुख केपीएस गिल ने राज्यपाल की तुलना बूढ़ी वेश्या से की है। उन्होंने कहा कि बूढ़ी वेश्या की तरह वे भी काम का इंतजार करते रहते हैं लेकिन उनके पास कोई काम नहीं होता। गिल ने यह विवादास्पद टिप्पणी एक टीवी इंटरव्यू में की।
गिल ने कहा, '1993 में राजेश पायलट ने मुझसे मणिपुर का राज्यपाल बनने के लिए रिक्वेस्ट की थी, लेकिन मैंने मना कर दिया। गवर्नर पद में मेरी दिलचस्पी कभी नहीं थी।' गिल ने यह बात तब कही जब उनसे असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के उस दावे के बारे में सवाल किया गया जिसमें, उन्होंने कहा था कि 2004 में एनडीए सरकार गिल को राज्यपाल बनाना चाहती थी। असम आंदोलन के दौरान 1979 से 1985 के बीच गिल असम में भी अपनी सेवा दे चुके हैं।
गिल पहले से ही विवादों में रहे हैं. कुछ दिनों पहले उन्होंने कहा था कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को 2002 गुजरात दंगों के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
इससे पहले उन्होने अपनी जीवनी 'द पैरामाउंट कॅाप' में गुजरात दंगों के लिए नरेंद्र मोदी को क्लीनचिट दी थी। उनका कहना था कि नरेंद्र मोदी को गोधरा दंगों के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।‘द पैरामाउंट कॉप’ के विमोचन के मौके पर उन्होंने कहा, ‘कानून-व्यवस्था पुलिस का काम है, न कि राजनीतिक नेतृत्व का। गुजरात के मुख्यमंत्री हिंसा खत्म करने के प्रति गंभीर थे।’ वे 2002 में गुजरात के मुख्यमंत्री के सुरक्षा सलाहकार रह चुके हैं। इस पुस्तक के लेखक राहुल चंदन हैं। गिल ने खुलासा किया था कि गुजरात दंगों के दौरान लालकृष्ण आडवाणी हालात काबू करने के लिए उन्हें गुजरात पुलिस प्रमुख बनाना चाहते थे, लेकिन उनकी सेवानिवृत्त होने के कारण ऐसा मुमकिन नहीं था। बाद में उन्हें मोदी का सुरक्षा सलाहकार बनाया गया। दंगों के दौरान मोदी से पहली मुलाकात का जिक्र करते हुए गिल ने कहा कि मोदी ने उनसे कहा था कि अथक प्रयासों के बाद भी वह दंगा रोकने में नाकाम हैं।1996 में आईएएस अधिकारी रूपल देओल बजाज ने उन पर यौन उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया था। गिल पर दो लाख का जुर्माना भी किया गया था। इसके साथ उन्हें 3 माह कठोर कारावास की भी सजा सुनाई गई थी। 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने सजा को सही ठहराया था। हालांकि, बाद में कैद को परिवीक्षा में बदल दिया गया था। मामले में पीड़िता ने मुआवजा लेने से इंकार कर दिया था। जिसे कोर्ट ने महिला संगठनों को दान देने का आदेश दिया था।
गिल लंबे समय तक खेल प्रशासन से भी जुड़े रहे हैं। केपीएस गिल भारतीय हॉकी फेडेरेशन के लंबे समय तक प्रमुख रहे हैं। हॉकी इंडिया और भारतीय हॉकी फेडरेशन के विवाद के चलते भी वो काफी सुर्खियों में रहे। हॉकी में उनके तानाशाही रवैये के कारण भी उनकी काफी आलोचना हुई। हॉकी इंडिया और भारतीय हॉकी फेडरेशन की लड़ाई अब भी जारी है।
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