कच्ची शराब बनाने में होता है कुत्ते के मल का इस्तेमाल!

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EXCLUSIVE: कच्ची शराब बनाने में होता है कुत्ते के मल का इस्तेमाल!
गोरखपुर. अक्टूबर में यूपी के आजमगढ़ जिले में जहरीली शराब पीकर लगभग 50 लोगों की मौत हो गई और कई लोग अपनी आंखों की रौशनी खो बैठे। इसके बाद सरकारी लीपापोती में आबकारी विभाग और पुलिस के कई कर्मचारी और अफसर सस्पेंड कर दिए गए। बावजूद इसके कच्ची शराब के रूप में बिकने वाली मौत पर अंकुश नहीं लगा। आज भी गांवों में कच्ची शराब बनाने वाली मौत की 'फैक्ट्रियां' चल रही हैं। 
 
ऐसी ही दो कच्ची शराब की भट्टियां गोरखपुर के खबार और झंगहा इलाकों में चलाई जा रही हैं।  की टीम ने इन गांवों में जाकर कच्ची शराब की भट्टियों की असलियत जानी। इस मौत के समान में सबसे चौंकाने वाली बात सामने आई कि इसे बनाने में इस्तेमाल होने वाली महुए की लहन को सड़ाने के लिए ऑक्सीटोसिन और कुत्ते का मल तक इस्तेमाल होता है।
 
इस असलियत को और गहराई से जानने के लिए सबसे पहले टीम मजनू के चौराहे पर पहुंची, जहां पहुंचते ही कच्ची शराब की गंध आने लगती है। चारों ओर नजर दौड़ाने के बाद यहां साधारण सा दिखने वाला एक मकान मिला।
 
यहां मौजूद एक व्यक्ति ने अपना नाम न बताने की शर्त पर शराब बनाने की पूरी प्रक्रिया को बताया। वह व्यक्ति टीम को एक कमरे में ले गया, जहां उसने बताया कि यहां महुआ और गुड़ दोनों की शराब बनाई जाती है। जब उससे इस काम को करने की वजह पूछी गई तो, उसने बताया कि परिवार बहुत बड़ा है, उसे पालने के लिए खेती से गुजारा नहीं होता।  
  EXCLUSIVE: कुत्ते के मल से बनती है कच्ची शराब!
आगे उसने बताया कि शराब बनाने के लिए महुआ या चावल की माड़ को हफ्ते 10 दिन तक सड़ाया जाता है। इसके बाद उसे भट्ठी पर रख उसका डिस्टिलेशन किया जाता है। शराब बनाने का रॉ मटीरियल जितना ज्यादा सड़ा होगा, शराब उतनी ही नशीली बनेगी। आगे उसने बताया कि इसी प्रोसेस में शराब जहरीली बन जाती है। जल्दी पैसा कमाने के चक्कर में महुआ की लहान में कुत्ते का मल, ऑक्सीटोसिन मिलाया जाता है। इससे सड़ने की प्रक्रिया तेज हो जाती है। इस डिस्टिलेशन के दौरान उसमें नौसादर और यूरिया मिला दिया जाता है। डिस्टिलेशन के बाद मिले कंसट्रेटेड लिक्विड में पांच गुना पानी और ऑक्सीटोसिन मिलाया जाता है। इसके बाद इसे अवैध कच्ची शराब की दुकानों पर सप्लाई कर दिया जाता है, जहां इसके व्यापारी इसमें और पानी मिलाकर 1 लीटर का 5 लीटर बनाते हैं। ऐसे में कभी नशा कम हो जाए तो इसमें नशा बढ़ाने के मिथाइल एल्कोहल को मिला दिया जाता है। यह मिथाइल एल्कोहल शरीर में जाकर दुष्प्रभाव डालता है, खासतौर से आंखों पर। इससे आंखों की रौशनी जाने का सौ फीसदी खतरा होता है।  EXCLUSIVE: कुत्ते के मल से बनती है कच्ची शराब!
इस प्रक्रिया को जान जब गांव के युवकों इस काम के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि कई बार इलाके की पुलिस को खबर दी जा चुकी है। पुलिस आती है, कुछ दिन के लिए यह कच्ची का धंधा बंद हो जाता है, इसके बाद पुलिस से डीलिंग के बाद धंधा फिर बेरोकटोक शुरू हो जाता है। इन्हीं युवकों की माने तो केवटलिया गांव के प्राथमिक विद्यालय से लगे खेत में भी कच्ची शराब की भट्ठी है।EXCLUSIVE: कच्ची शराब बनाने में होता है कुत्ते के मल का इस्तेमाल!
जब उस युवक की बताई जगह पर टीम पहुंची तो देखकर आश्चर्य हुआ कि वहां प्राथमिक विद्यालय के ठीक बगल के बगीचे में कच्ची शराब का धंधा ठप्पे से चल रहा है। इस बारे में जब वहां के हेडमास्टर से पूछा तो उन्होंने अपनी लाचारी व्यक्त करते हुए कहा कि जब इन लोगों का पुलिस कुछ नहीं बिगाड़ पाई, तो वह कैसे इनका विरोध करेंगे। उन्होंने बताया कि इस धंधे में परिवार के साथ-साथ छोटे बच्चे भी शामिल होते हैं। कई बार इन बच्चों के शरीर से इतनी बदबू उठती है कि उसने पास खड़ा होना मुश्किल हो जाता है। हेडमास्टर ने बताया कि उनके पढ़ाए हुए कई युवक इस कच्ची शराब के शिकार बन चुके हैं।EXCLUSIVE: कच्ची शराब बनाने में होता है कुत्ते के मल का इस्तेमाल!
जब बगीचे में बन रही इस शराब का जायजा लिया तो यहां भी मजनू के चौराहे जैसा ही नजारा था। यहां भी प्लास्टिक कंटेनर्स में महुआ की लहन रखी हुई थी। भट्ठी पर तैयार लहन को उबालने की प्रक्रिया चल रही थी। जब यहां काम करने वालों से पूछा कि यह भट्ठी किसकी है, तो मालूम पड़ा की यह गांव के ही विनोद नाम के आदमी का बगीचा है और वह ही ठेके पर भठ्टी चलवाता है। उसके भाइयों ने उसकी हरकतों के चलते उसे परिवार से अलग कर दिया था। तब से वह अपने गुजारे के लिए कच्ची शराब के धंधे में उतर गया था।
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