अंत भालो, सो सब भालो...

Share it:
कुर्सी का सवाल
रिटेल में एफडीआई के गुणों-अवगुणों पर फिर कभी बात करेंगे, लेकिन यकीन मानिए, रिटेल कुर्सी सर्वगुण संपन्न होती है। एफडीआई के खिलाफ आर-पार की लड़ाई पर उतरीं ममता बनर्जी के वित्त मंत्री हैं अमित मित्रा। अमित मित्रा पहले फिक्की के महासचिव होते थे और तब एफडीआई के गुण गाते थे। अब ममता के मिनिस्टर हैं। आगे आप समझदार हैं।

लड़ाई रिटेल की, फोन बरामदगी थोक में
और जब रिटेल में एफडीआई के खिलाफ आर-पार की लड़ाई छेड़ी जाती है, तो उसमें रिटेल सेनापतियों की जरूरत नहीं होती। यही वजह है कि जब ममता बनर्जी ने समर्थन वापसी का फैसला किया था, तो खुद ममता के मुंह से इसका ऐलान होने के पहले तक किसी को इसका अंदाजा नहीं था। देशभर का मीडिया लाइव टेलीकास्ट कर रहा था, सैकड़ों पत्रकार डटे हुए थे, टीवी वालों के प्राइम टाइम का दम निकला जा रहा था, लेकिन किसी के पास कोई खबर "सूत्रों के हवाले" से भी नहीं थी। न पत्रकारों के पास, न पक्षकारों के पास। वजह? ममता ने सारे नेताओं के मोबाइल फोन (थोक में) जमा करवा लिए थे और चाय देने के नाम पर भी वेटर तक को अंदर आने की अनुमति नहीं थी।

एक फोन अंदर था
इसमें एक करेक्शन है। एक मोबाइल फोन मीटिंग के अंदर था। शायद इस उम्मीद में कि उसकी घंटी बजेगी और स्क्रीन पर मनमोहन सिंह या सोनिया गांधी का नाम दिखेगा। पर घंटी बजी ही नहीं।

अंत भालो, सो सब भालो...
वैसे ममता की मीटिंग में वेटर को भी अंदर आने की इजाजत नहीं थी। अगर वेटर होते और दीदी थोड़े नरम मूड में होतीं, तो कई तृणमूल वाले वेटर से मिठाई भी मंगवा सकते थे। वजह यह कि सिर्फ ममता के लाड़ले होने के नाते मुकुल रॉय रेलमंत्री बन गए थे। वरना तो वह कॉलेज छात्रसंघ अध्यक्ष बनने के भी काबिल नहीं हैं (कभी कॉलेज गए ही नहीं)। योग्य दावेदारों को यह अखरा था और जब सारे मंत्रियों की पूरी छुट्टी की घंटी बजी, तो कई का तो दिल मिठाई बंटवाने का होने लगा था। हम दिनेश त्रिवेदी की बात नहीं कर रहे हैं। त्रिवेदीजी वैसे भी मिठाई पर ज्यादा भरोसा नही करते हैं।

अब इस तरफ के मुकुल रॉय
तृणमूल गुजर गई.. सीपीएम बीमार है। प्रणबदा महामहिम बन गए, कांग्रेस लाचार है। शायद ऐसा पहली बार हो रहा है कि केंद्र की सरकार में बंगभूमि का कोई बड़ा क्रांतिकारी मौजूद नहीं है। चिंता न करें। अब कांग्रेस के कई मुकुल रॉय के दिन फिरेंगे। अभी नहीं। पितृपक्ष के बाद।।

गंभीर राष्ट्रपति
मुगल गॉर्डन की सैर सिर्फ एक प्रतीक है। महामहिम प्रणबदा ने राज्यों का दौरा शुरू कर दिया है। हालांकि विदेश और रक्षा मंत्रालय संभाल चुके प्रणबदा विदेश यात्राओं के मामले में अपनी पूर्ववर्ती की तरह उत्साह में नहीं हैं। बहरहाल, जब प्रणबदा तमिलनाडु गए, तो मुख्यमंत्री जे. जयललिता उनकी अगवानी करने हवाई अड्डे पर मौजूद थीं। सिर्फ प्रोटोकॉल के तहत नहीं, बल्कि अपने तमाम मंत्रियों की फौज के साथ। प्रणबदा को कम गंभीरता से लेने की गंभीर गलती करने को कोई तैयार नहीं है।


फेसबुक पॉलिटिक्स

संजय जोशी को नरेंद्र मोदी ने भले ही गुजरात से राज्यबदर करवा दिया हो और भले ही राजनीति में भी पटखनी दे दी हो, लेकिन खेल अभी बाकी है मेरे दोस्त। संजय जोशी ने हाल में फेसबुक पर अखबारों की कुछ कतरनें पोस्ट कीं और गुजरात के कुछ अखबारों ने जोशी की भूरि-भूरि तारीफ करते हुए छाप दीं। अभी और तारीफ भी बस छपने ही वाली है।

बोलती बंद
पीएम पूरे रंग में हैं। पता चला है कि इस बार कांग्रेस कोर ग्रुप की मीटिंग में पीएम ने सबको चुप करा दिया और यह भी साफ कर दिया कि यह 2004 नहीं है, जब मनमोहन सिंह को पीएम नॉमिनेट किया गया था। यह 2012 है और 2009 में पहले से ज्यादा सीटें उनकी सरकार को और सोनिया गांधी के नेतृत्व को मिली हैं।

आग में घी
अभिषेक वर्मा मामले की जांच को लेकर कई सवाल चर्चाओं में हैं। हालांकि अभी तक हवाला वाले जैन की किस्म की कोई डायरी वगैरह सामने नहीं आई है, लेकिन राम जेठमलानी एक-दो दिन में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर करने वाले हैं। बड़ी खबर बन सकती है।


रिसर्च प्रोजेक्ट
गोधरा के बाद गुजरात में हुए दंगों पर कई लोगों ने रिसर्च की है। यकीन तो नहीं होता, लेकिन सुनाई यह दिया है कि इनमें से एक रिसर्चर सुप्रीम कोर्ट के एक सिटिंग जज के परिवार का सदस्य है।

दिल बहलाने को...शरद पवार के पास विकल्प बहुत सीमित हैं। एक साल में सिर्फ एक बार दिल्ी में रूठ सकते हैं और एक बार मुंबई में। वह भी बस तीन-चार दिन तक। यह बात कांग्रेस भी समझती है। शायद इसीलिए कांग्रेस आलाकमान ने भूमि अधिग्रहण कानून पर बने मंत्री समूह का प्रमुख साहब को बना दिया है। वैसे मंत्रिमंडल में नंबर-टू की हैसियत अधिकृत तौर पर रक्षा मंत्री एके एंटोनी के पास है। यह बात साहब भी जानते हैं। लेकिन वो क्या कहते हैं ... गालिब ये ख्याल अच्छा है।


खतरनाक फोटू
चलिए फिर एफडीआई-एफडीआई खेलते हैं। भारत बंद के दौरान भाजपा के व्यापारी मोर्चे ने जंतर-मंतर पर धरना-रैली का आयोजन किया। तमाम पार्टियों के नेताओं को न्यौता गया और तमाम नेता पधारे भी। भाजपा से लेकर मुलायम सिंह तक और बाकियों से लेकर सीपीएम तक। सीपीएम के येचुरी बैठे गडकरी के पास। बोलचाल तो नहीं हुई और बोलती बहुत देर तक बंद रही। शरद यादव ने उनके गले में हाथ डालकर अपनेपन का अहसास दिलाया, लेकिन फोटो गडकरी के साथ ही खिंच गई। साम्यवाद खतरे में पड़ा और 'धरना कोई भाजपा का थोड़े ही था' की सफाई देते हुए खतरे से किसी तरह बाहर निकल सका। बेचारा।
Share it:
News Desk

Pradeshik Jan Samachar

देश

स्थानीय

No Related Post Found

Post A Comment:

Also Read

अहमदाबाद के गरबा दल, मुबई ढोल ताशा पार्टी की अनुठी प्रस्तुति के साथ श्री देवधर्मराज राजवाडा मित्र मंडल के गरबोत्सव का हुआ शुभारंभ

मातारानी के चल समारोह में शामील हुए नगर के सभी समाज एवं वर्ग के गणमान्य झाबुआ ।   नवरात्री पर्व के प्रथम

Unknown