
इसी घोशणा के चलतें इन क्षेत्रो में कांग्रेस के संासद व विधायक चुनाव जीत गये हैं। लेकिन आज 5 साल बीत जाने के बाद भी क्षेत्र में एक किलोमीटर भी रेल पटरी पर नही दौड़ पाई हैं जिसके कारण इन क्षेत्रो के आदिवासी अपने आपको ठगा महसूस कर रहे हैं। वहीं राश्ट्र के प्रधानमंत्री की घोशणा का यह हश्र होगा किसी ने सोचा भी नही था। रेल लाओ महासमिति ने पिछले 35 वर्शाे से इस क्षेत्र में रेल लाने के लिए कई अनआंदोलन, महाबंद, धरना आंदोलन, रेल रोको आंदोलन, दिल्ली औंर भोपाल में प्रदर्षन तथा 20 हजार ज्ञापन सरकार को दिये जा चुके हैं तथा एक बार फिर सौंपे गये ज्ञापन के माध्यम से महासमिति ने निवेदन किया हैं कि षीघ्र ही राश्ट्र के विकास की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए आदिवासियों मे विष्वास की भावना जागृत करे।
वहीं ज्ञापन में महासमिति ने धार, झाबुआ, दाहोद के संासदो को पत्र लिखकर कहा कि राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप छोड़कर यदि वास्तव में सांसदो को कुर्सी से लगाव नही, वरन् क्षेत्र के विकास से लगाव हैं तो आंध्रप्रदेष के सांसदो की तर्ज पर अपना इस्तीफा प्रधानमंत्री को सौंपे औंर रेल आंदोलन के लिए कुद पड़ें। साथ ही मध्यप्रदेष के मुख्यमंत्री को भी इस आंदोलन में आगे बुलाकर रेल परियोजना के लिए 2 हजार करोड़ के विषेश पैकेज की मांग मानसुन सत्र म करने का कहा हैं।
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