आज के आधुनिक युग में दिनचर्या पूरी तरह से अस्त-व्यस्त हो गई है। खाने-पीने के सभी सही नियम टूट चुके हैं और भोजन की गुणवत्ता भी निम्न स्तर तक पहुंच गई है। ऐसे में कम उम्र में ही हमें कई बीमारियां घेर लेती हैं। आज अधिकांश लोगों को ब्लड प्रेशर यानी रक्त संचार से जुड़ी बीमारियां हो रही हैं, असमय बाल सफेद हो रहे हैं, जवानी में ही बुढ़ापे की बीमारियां हो रही हैं।
उचित दवा और देखभाल के अभाव में ये बीमारियां भयंकर रूप धारण कर सकती हैं। ब्लड प्रेशर, जवानी और केशों को सही रखने के लिए प्राचीन काल से ही एक परंपरागत क्रिया चली आ रही है। इस क्रिया से हमारी किस्मत तो चमकती है साथ ही जवानी भी बनी रहती है।
आगे दिए गए फोटो में जानिए एक चमत्कारी क्रिया के विषय में खास जानकारी और किस्मत चमकाने के उपाय...धार्मिक कर्मों में आरती या भजन के साथ ताली बजाने की बहुत प्राचीन परंपरा है। ताली बजाने से उत्पन्न आवाज को शास्त्रों में करतल ध्वनि कहा जाता है। उत्साह और खुशी का भाव प्रकट की प्रतीक करतल ध्वनि का महत्व काफी अधिक है।
यदि कोई व्यक्ति नियमित रूप से प्रतिदिन कुछ समय ताली बजाए तो उसे चमत्कारी ढंग से स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होते हैं। ताली बजाने से हमारे स्वास्थ्य को मिलने वाले लाभ को ध्यान में रखते हुए ऋषि-मुनियों ने ताली बजाने की परंपरा प्रारंभ की है।हमारे शरीर की सभी नसें हाथों हथेली से जुड़ी हुई हैं। जब हम दोनों हथेलियों को आपस में तेजी से मिलते हैं तो उन पर पडऩे वाला दबाव रक्तसंचार को ठीक करता है। मानव की कार्य करने की क्षमता का सर्वाधिक विकास हाथों में हुआ है। एक्यूप्रेशर पद्धति में भी हाथों में विशेष बिंदु बताते हैं, जिन्हें जाग्रत करने पर विशेष लाभ बताया गया है। ताली बजाने से हाथों में रक्त का संचार सुधरता है। एक्यूप्रेशर बिंदुओं पर दबाव पड़ता है। कई शोधों में ताली बजाने को उत्साहवर्धक दृष्टिï सकारात्मक बनाने वाला, बुढ़ापे की गति रोकने वाला और केशों को सफेद होने से रोकने वाला बताया गया है। पूजा के समय अबकी बार ताली बजाते वक्त इन सब कोणों से सोचें। थोड़ी जागरूकता और प्रेम के साथ ताली बजाएं।भगवान की आरती या भजन जब हम वहां उपस्थित होते हैं तो ताली बजा कर उसमें तल्लीन होने का प्रयास करते हैं। जब दोनों हाथों की हथेलियों (करतल) को हम गति से एक दूसरे से टकराते हैं तो ध्वनि निकलती है। इस प्रक्रिया की निरंतरता को ताली बजाना कहा जाता है।
ताली या करतल ध्वनि बिना बिना उपकरण का वाद्ययंत्र है। आरती या भजन के दौरान हम घंटे-घडिय़ाल की ताल के साथ ताली बजाते हैं अर्थात ताल के साथ ताल मिलाते हैं। इससे हमारा मन उस आरती या भजन के गीत संगीत में रमने लगता हैपरमात्मा की भक्ति की एक धारा संकीर्तन है। संकीर्तन में हम गीत, संगीत और नृत्य से परमात्मा का स्मरण करते हैं। संकीर्तन के रूप में आरती, भजन आदि किए जाते हैं। पूजन, आरती या भजन में सम्मिलित लोग सामूहिक रूप से करतल ध्वनि करते हैं इससे न केवल मन के विक्षेप नष्टï होते हैं, अपितु मन सरलता से भाव के स्पंदन को पकड़कर भगवान से तादात्म्य बना लेता है।।कीर्तन, वंदन, नवधा भक्ति के सुपरिचित अंग हैं। करतल ध्वनि संकीर्तन का महत्वपूर्ण अंग हैं। वैष्णव परंपरा में कहा जाता है कि ताली बजाकर कीर्तन करने से पाप उसी प्रकार उड़ जाते हैं, जिस तरह पेड़ के नीचे ताली बजाने पर उस पर बैठे पक्षी उड़ जाते हैं। ऐसा इसलिए है- क्योंकि संकीर्तन में करतल ध्वनि का स्वर-ताल से जो संयोग होता है वह भक्तों को ध्यान की गहनता में उतरने में सहायक होता है।यह कोई चमत्कार न होकर एक सामान्य घटना है जिसे हम केवल अनुभव करते हैं। कीर्तनकार बताते हैं कि एक बार शुरू हो जाने पर बजाने वाले का ताली या झांझ-मंजीरों पर कोई नियंत्रण नहीं रहता। कीर्तन का भाव ही मुख्य हो जाता है।
वहीं ताल की प्रेरणा बन जाता है। भाव की गहनता में साधक की करतल ध्वनि आदि रुक जाती है और वह भगवत कृपा का पान करने लगता है।
Post A Comment: