महाभारत में एक बार युधिष्ठिर ने पितामह भीष्म से पूछा कि मनुष्य को कौन-कौन से कार्य करना चाहिए? कौन से कार्य नहीं करना चाहिए? और हमारा स्वभाव कैसा होना चाहिए?
महाभारत के अनुशासन पर्व के अनुसार इस प्रश्न के उत्तर में पितामह भीष्म ने बताया कि शरीर से तीन, वाणी से चार और मन से तीन बुरे कार्यों का त्याग करना चाहिए। इस प्रकार दस कर्म महापाप बताए गए हैं।शरीर से होने वाले 3 महापाप: शरीर से होने वाले 3 महापाप बताए गए हैं। इनमें से पहला पाप है हिंसा करना। किसी भी परिस्थिति में अनावश्यक रूप से हिंसा करना पाप माना गया है।पुरुषों के लिए शरीर से होने वाला एक भयंकर महापाप है परस्त्रीगमन और स्त्रियों के अनुसार परपुरुषगमन करना। किसी भी परिस्थिति में ये कर्म महापाप माना गया है। पति-पत्नी को एक-दूसरे के प्रति ईमानदार रहते हुए वैवाहिक जीवन के नियमों का पालन करना चाहिए। एक-दूसरे के विश्वास को तोडऩा महापाप है।शरीर से होने वाला अगला पाप है चोरी। चोरी करना भी महापाप माना गया है। व्यक्ति को खुद की मेहनत से धन आदि प्राप्त करना चाहिए। अन्य इंसानों की वस्तुएं चुराना पाप है।महाभारत के अनुशासन पर्व के अनुसार वाणी से होने वाले चार पाप बताए गए हैं। व्यर्थ की बात करना यानी बकवास करना भी एक पाप है। निष्ठुर यानी कठोर वचन बोलना भी पाप की श्रेणी में आता है।व्यक्ति को कभी भी किसी की चुगली नहीं करना चाहिए। कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए। ये भी वाणी से होने वाले पाप हैंअनुशासन पर्व के अनुसार मन से होने वाले तीन पाप इस प्रकार हैं- पहला पाप है दूसरों के धन का लालच करना और उसे हड़पने की सोचना। किसी भी व्यक्ति के धन को हड़पना और ऐसा सोचना भी पाप है।कभी भी दूसरे लोगों से वैर का भाव नहीं रखना चाहिए। सभी प्राणियों से प्रेम का भाव रखना ही हमारा धर्म है।मन से होने वाला तीसरा पाप है कर्म के फल पर विश्वास न करना। यदि हमें विधाता द्वारा दिए गए कर्म के फल पर विश्वास नहीं करते हैं तो यह भी एक पाप ही है।
महाभारत के अनुशासन पर्व के अनुसार इस प्रश्न के उत्तर में पितामह भीष्म ने बताया कि शरीर से तीन, वाणी से चार और मन से तीन बुरे कार्यों का त्याग करना चाहिए। इस प्रकार दस कर्म महापाप बताए गए हैं।शरीर से होने वाले 3 महापाप: शरीर से होने वाले 3 महापाप बताए गए हैं। इनमें से पहला पाप है हिंसा करना। किसी भी परिस्थिति में अनावश्यक रूप से हिंसा करना पाप माना गया है।पुरुषों के लिए शरीर से होने वाला एक भयंकर महापाप है परस्त्रीगमन और स्त्रियों के अनुसार परपुरुषगमन करना। किसी भी परिस्थिति में ये कर्म महापाप माना गया है। पति-पत्नी को एक-दूसरे के प्रति ईमानदार रहते हुए वैवाहिक जीवन के नियमों का पालन करना चाहिए। एक-दूसरे के विश्वास को तोडऩा महापाप है।शरीर से होने वाला अगला पाप है चोरी। चोरी करना भी महापाप माना गया है। व्यक्ति को खुद की मेहनत से धन आदि प्राप्त करना चाहिए। अन्य इंसानों की वस्तुएं चुराना पाप है।महाभारत के अनुशासन पर्व के अनुसार वाणी से होने वाले चार पाप बताए गए हैं। व्यर्थ की बात करना यानी बकवास करना भी एक पाप है। निष्ठुर यानी कठोर वचन बोलना भी पाप की श्रेणी में आता है।व्यक्ति को कभी भी किसी की चुगली नहीं करना चाहिए। कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए। ये भी वाणी से होने वाले पाप हैंअनुशासन पर्व के अनुसार मन से होने वाले तीन पाप इस प्रकार हैं- पहला पाप है दूसरों के धन का लालच करना और उसे हड़पने की सोचना। किसी भी व्यक्ति के धन को हड़पना और ऐसा सोचना भी पाप है।कभी भी दूसरे लोगों से वैर का भाव नहीं रखना चाहिए। सभी प्राणियों से प्रेम का भाव रखना ही हमारा धर्म है।मन से होने वाला तीसरा पाप है कर्म के फल पर विश्वास न करना। यदि हमें विधाता द्वारा दिए गए कर्म के फल पर विश्वास नहीं करते हैं तो यह भी एक पाप ही है।
जो लोग इन दस महापापों को या इनमें से किसी एक पाप को भी करते हैं तो उन्हें भयंकर परिणाम भोगने पड़ सकते हैं। अत: इस कार्यों से बचना चाहिए।
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