वडोदरा. सचिन तेंडुलकर क्रिकेट के सभी फॉर्मेट से सेवानिवृति के बाद अंधेरे में डूबे गांवों में बिजली पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। उन्होंने इसकी शुरुआत भी कर दी है। इसके लिए वे गांवों का सर्वे करवा रहे हैं। सचिन के करीबी दोस्त और पूर्व क्रिकेटर अतुल बेदाडे ने बताया कि वे ऐसे गांवों की पहचान करा रहे हैं, जहां अब तक बिजली नहीं पहुंची है। वे 25-30 गांवों का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं। (व्हीलचेयर पर बैठी मां के लिए सचिन मुंबई में खेलेंगे आखिरी टेस्ट)
सचिन के मन में इस प्रोजेक्ट का विचार चार-पांच साल पहले आया था। मुंबई से जब भी वे लोनावला जाते थे, तो बीच में अपने एक रिश्तेदार के घर जरूर रुकते थे। लेकिन उनके गांव में बिजली नहीं थी। बेदाडे बताते हैं कि सचिन ने इसे प्रोजेक्ट के रूप में लिया और विशेषज्ञों से बात की। नतीजा यह निकला कि गांव तक बिजली के खंबे और तार ले जाना महंगा पड़ेगा, जबकि सौर-ऊर्जा से यही काम किफायती रहेगा। उन्होंने अपने रिश्तेदार के गांव में सौर-ऊर्जा प्लांट लगवाया।
पिछले वर्ष जब उन्हें राज्यसभा सदस्य बनाया गया, तो उन्होंने इस प्रोजेक्ट को बड़े पैमाने पर ले जाने की योजना बनाई। राज्यसभा से उन्हें पांच करोड़ रुपए की सांसद निधि मिलती है। यदि कोई विशेष योजना हो तो यह राशि दस करोड़ रु. तक बढ़ाई जा सकती है। बेदाडे के अनुसार सचिन मानते हैं कि प्रोजेक्ट में सांसद निधि से जो भी कमी आएगी, उसे वे अपने खर्च से पूरा करेंगे। खेल जगत में सबसे ज्यादा दबाव झेला है सचिन ने
भारतीय क्रिकेट के लिए यह सप्ताह काफी हलचल भरा रहा। युवराज सिंह की दमदार वापसी और चेतेश्वर पुजारा का प्रथमश्रेणी क्रिकेट में एक और तिहरा शतक। हालांकि, दोनों का ही प्रदर्शन सचिन तेंडुलकर की संन्यास की घोषणा के साये में दब गया। इसके साथ ही सचिन के संन्यास पर कयासबाजी भी खत्म हो गई।
जैसा कि पिछले 24 साल में होता रहा। सचिन इस बार भी सब पर भारी पड़े। उनकी घोषणा ने लोगों को यादों के गलियारे में लौटा दिया। हूक लिए एक सवाल भी उठा कि क्या कभी ऐसा खिलाड़ी फिर देखने को मिलेगा। वैसे, सचिन की उपलब्धियों को देखते हुए यह कोई अनोखी बात नहीं थी। सचिन 200वां टेस्ट भारत में खेलेंगे। लेकिन जिस तरीके से इसकी योजना बनी, इससे मुझे लगता है कि सचिन और बोर्ड अधिकारियों के बीच संन्यास को लेकर कोई बात जरूर हुई थी। संभव है कि दोनों के बीच इसे लेकर नूराकुश्ती जैसी स्थिति भी बनी हो। बहरहाल, संन्यास का अंतिम फैसला सचिन का ही है। बोर्ड के पदाधिकारियों की यह जिम्मेदारी है कि वे खेल को लेकर योजना भविष्य की बनाएं। लेकिन इसके लिए किसी खिलाड़ी पर दबाव नहीं डाला जा सकता। चाहे वह सचिन हों या कोई और।
यदि सचिन की खेलने की ज्यादा इच्छा होती तो वे प्रथमश्रेणी क्रिकेट खेलते रह सकते थे। जैसा कि जैक हॉब्स ने किया। हॉब्स टेस्ट क्रिकेट छोडऩे के बावजूद 52 की उम्र तक प्रथमश्रेणी क्रिकेट खेलते रहे। रिकी पोंटिंग भी टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद तस्मानिया के लिए खेले। संन्यास कब लेना है और कब लेना चाहिए। यह खिलाड़ी का विशेषाधिकार है। यह सिर्फ समय की बात होती है। यह भी सवाल उठता रहा है कि क्या सचिन ने संन्यास लेने में दो साल की देरी कर दी? क्या उन्हें 2011 में विश्वकप जीतने के बाद ऐसा नहीं करना चाहिए था? ये सवाल सिर्फ एक वजह से कुछ हद तक जायज हैं कि सचिन विश्वकप के बाद रन बनाने के लिए संघर्ष करते रहे हैं। इसके सिवाय इसकी कोई प्रासंगिकता नहीं है। जब भी महान खिलाडिय़ों की चर्चा होती है तो उनके संन्यास के वक्त का महत्व नहीं होता। इसे तो लोग कुछ ही दिनों में भूल जाते हैं। लोग याद रखते हैं उनके खेल को। जब भी वे मैदान पर उतरे, सभी निगाहें उन पर टिक गईं। 16 साल के बच्चे को दुनिया के सर्वश्रेष्ठ गेंदबाजों का सामना कर कॅरियर शुरू करते देखना बेहद रोमांचक था। यह बच्चा यहीं नहीं रुका। अविश्वसनीय तरीके से वर्षों लगातार खेलता रहा। प्रदर्शन में निरंतरता, आदर्श स्ट्रेट ड्राइव, बेदाग कवर ड्राइव और निडरता से खेला गया अपरकट तो सचिन की प्रतिभा के कुछ सबूत हैं। इन सबके साथ खेल के प्रति उनका प्यार भी उनकी लोकप्रियता की बड़ी वजह रही। उनके रनों और शतकों के पहाड़ को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इस खेल के भीष्मपितामह डॉन ब्रैडमैन ने भी 1998 में यह माना था कि वे सचिन में अपनी छवि देखते हैं। सचिन की महानता पर आखिरी मुहर थी। मुझे लगता है कि सचिन की लोकप्रियता की वजह खेल के अलावा अन्य कारणों से भी है। यह संयोग हो सकता है कि जब भारत ने दुनिया के लिए अपनी अर्थव्यवस्था के दरवाजे खोले तभी सचिन रूपी सितारा उदय होता है। उनमें नए भारत की छवि दिखती है, जिसे खुद पर भरोसा है और विरोधियों की परवाह नहीं है। जिसमें कामयाबी की भूख है और जो कुछ कर गुजरने के लिए हर पल जोखिम लेने को तैयार है। निश्चित तौर पर उन्हें मीडिया का भी बड़ा समर्थन मिला। लेकिन यह भी ध्यान रखना होगा कि इससे उन पर उम्मीदों का भारी दबाव पड़ा। शायद दुनिया में किसी भी खिलाड़ी से ज्यादा दबाव सचिन ने झेला।
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