सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली ..........विधानसभा चुनाव का बिगुल बजते ही जिले में राजनीतिक पार्टियां सोशयल मीडिया में बने रहने के लिए नित नए प्रयास कर रही है सोशयल मीडिया की चकाचौंध 'से सभी प्रभावित है कुछ ऐसा ही कार्य आबकारी विभाग द्वारा सोशल मीडिया में अपना वर्चस्व दिखाने के लिए किया गया जबकि धरातल पर कुछ और ही नजारा है जिला अवैध शराब माफियाओं का अड्डा बन चुका है .............जो बाटे दारू और साड़ी उनको कभी न देंगे वोट लगा फ्लेक्स दारू की दुकानों पर नजर आ रहा है इस फ्लेक्स को लगाकर आबकारी विभाग के नारा एक अर्थ निकाला यह जाए तो यह कि राजनीतिक पार्टियां चुनाव के समय में दारू और साड़ी से वोट खरीदते हैं एक तरह से विभाग सीधे-सीधे से यह आरोप लगा रहा है कि राजनीतिक पार्टियां अपने प्रत्याशी को जिताने के लिए दारु बांट कर वोट की राजनीति करती है हां यह जरूर है पक्ष विपक्ष दोनों एक दूसरे की शिकायतें करते हैं लेकिन जहां तक जानकारी है शायद ही ऐसा कुछ प्रमाणित हुआ हो |
वहीं दूसरी ओर एक और फ्लेक्स लगाया गया शराब पीने से शरीर पर होने वाले नुकसान को दर्शाया गया जिला आबकारी अधिकारी वाकई में जनहित में कार्य करना चाहते हैं तो उन्हें गांव गांव व फलिये फलिये जाकर आमजन को शराब के सेवन से होने वाले नुकसान के बारे में बताना होगा वह भी एक बार नहीं कई बार तब जाकर जागरुकता आएगी शराब के सेवन करने वाले अगर इस तरह फ्लेक्स बैनर पर लगे नारे पढ़कर शराब का सेवन नहीं करते तो शायद कब से जिला शराब मुक्त हो जाता वहीं दूसरी ओर अगर हम जिले के साक्षरता पर ध्यान दें तो करीब 40% है जो इस तरह के बैनर फ्लेक्स पढ़ने में लगभग असमर्थ हैं तो यह फ्लेक्स बैनर का क्या औचित्य समझ से परे है यह तो ऐसा प्रतीत होता है मानो आबकारी विभाग मात्र सोशल मीडिया में पब्लिसिटी हेतु कर रहा है चर्चा चौराहों पर है कि सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली की कहावत चरितार्थ होती दिख रही है अब या आबकारी अधिकारी को कौन समझाए कि बैनर फ्लेक्स व फोटो खींचकर जागरूकता नहीं लाई जा सकती इसके लिए जमीनी स्तर पर कार्य करना होता है सोशल मीडिया में बने बने रहने के लिए बैनर फ्लेक्स तक ही आबकारी विभाग सीमित है जबकि जिला अवैध शराब माफियाओं का अड्डा बन चुका है
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